माघ मास की पंचमी को पूरे देश में माता सरस्वती की पूजा बड़े ही श्रद्धा और उल्लास के साथ की जाती है। छोटे-बड़े पंडाल सजाए जाते हैं, स्कूलों और कॉलेजों में देवी सरस्वती की आराधना होती है, और हर जगह ज्ञान एवं विद्या की देवी का गुणगान किया जाता है। परंतु सवाल यह उठता है कि क्या यह पूजा मात्र मिट्टी की मूर्ति तक सीमित है? क्या हमारा समाज वाकई महिलाओं के प्रति वही आदर और सम्मान दर्शाता है, जो वह देवी सरस्वती को देता है?
आज जिस समाज में हम रह रहे हैं, वहां एक ओर नारी की पूजा होती है, और दूसरी ओर उसी नारी का अपमान। देवी सरस्वती को विद्या और बुद्धि की देवी मानकर उनकी प्रतिमा के सामने सिर झुकाने वाला समाज जब एक जीवंत नारी को अपमानित करता है, तब उसकी दोहरी मानसिकता उजागर हो जाती है। यह विरोधाभास हमारी सामाजिक व्यवस्था में इतनी गहराई तक समाया हुआ है कि इसे सामान्य माना जाने लगा है।
माता सरस्वती की पूजा: श्रद्धा या मात्र परंपरा?
वसंत पंचमी के दिन माता सरस्वती की पूजा बड़े धूमधाम से होती है। विद्यार्थी, शिक्षक, और आम लोग देवी सरस्वती के चरणों में ज्ञान और बुद्धि की कामना करते हैं। लेकिन क्या यह पूजा केवल एक औपचारिकता बनकर रह गई है?
आज रात जब माता की मूर्ति विसर्जन के लिए जाएगी, तो उसे नदी या तालाब में निर्वस्त्र करके प्रवाहित कर दिया जाएगा। यह प्रक्रिया कई वर्षों से चली आ रही है, जिसे समाज ने परंपरा के नाम पर स्वीकार कर लिया है। लेकिन इसी समाज में जब किसी महिला का वस्त्र फाड़ा जाता है, उसे अपमानित किया जाता है, उसके अधिकारों का हनन किया जाता है, तब कोई आवाज नहीं उठाता। क्या यह दोहरी मानसिकता नहीं है?
पूरे दिन माता सरस्वती के नाम की जय-जयकार करने वाले लोग रात में किसी की बेटी, किसी की बहू को भोग-विलास की वस्तु समझते हैं। देवी के प्रति श्रद्धा दिखाने वाला समाज वास्तविक नारी को अपमानित करने में संकोच नहीं करता। यह दिखाता है कि हमारा समाज महिलाओं के प्रति दोहरे मापदंड अपनाता है।
समाज में नारी की वास्तविक स्थिति
अगर हम समाज की वास्तविकता पर नजर डालें, तो महिलाओं की स्थिति अभी भी चिंताजनक बनी हुई है।
1. बलात्कार और यौन हिंसा
आज भी हमारे देश में हर 16 मिनट में एक महिला का बलात्कार होता है। यह आंकड़ा हमारी सामाजिक व्यवस्था की सच्चाई को उजागर करता है। देवी सरस्वती की पूजा करने वाले वही लोग महिलाओं को सार्वजनिक स्थानों पर अपमानित करने से नहीं चूकते।
2. घरेलू हिंसा और दहेज हत्या
आज भी कई राज्यों में दहेज के कारण महिलाओं को जलाकर मार दिया जाता है या प्रताड़ित किया जाता है। यह कैसी पूजा है, जो हमें एक मूर्ति के आगे झुकना सिखाती है, लेकिन जीवित नारी के लिए सम्मान का भाव पैदा नहीं कर पाती?
3. शिक्षा और स्वतंत्रता से वंचित महिलाएं
माता सरस्वती को ज्ञान की देवी माना जाता है, लेकिन आज भी भारत के कई हिस्सों में लड़कियों की शिक्षा को प्राथमिकता नहीं दी जाती। बेटियों को बोझ समझकर स्कूल भेजने के बजाय घर के काम में लगा दिया जाता है।
4. कार्यस्थल पर भेदभाव और लैंगिक असमानता
बड़ी-बड़ी कंपनियों और दफ्तरों में आज भी महिलाओं को पुरुषों के समान वेतन और अवसर नहीं दिए जाते। उन्हें कमजोर, कम योग्य और भावनात्मक समझा जाता है, जबकि वास्तविकता यह है कि महिलाएं किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से कम नहीं हैं।
सावित्रीबाई फुले: एक प्रेरणादायक उदाहरण
जब समाज में महिलाओं को शिक्षा से वंचित किया जा रहा था, तब सावित्रीबाई फुले ने नारी शिक्षा की अलख जगाई। उन्होंने सामाजिक अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई और महिलाओं को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया। उनके संघर्ष से हमें यह सीख मिलती है कि समाज को बदलने के लिए हमें खुद आगे आना होगा।
अगर हम माता सरस्वती की पूजा करते हैं, तो हमें समाज में महिलाओं को शिक्षा, सम्मान और सुरक्षा देने की भी शपथ लेनी चाहिए।
समाज में बदलाव कैसे लाया जाए?
हमें यह समझना होगा कि महिलाओं को केवल मूर्ति बनाकर पूजने से समाज नहीं बदलेगा। हमें उनके अधिकारों के लिए संघर्ष करना होगा और समाज की दोहरी मानसिकता को जड़ से खत्म करना होगा।
1. महिलाओं के प्रति सोच बदलें
हमें अपनी मानसिकता बदलनी होगी और महिलाओं को बराबरी का दर्जा देना होगा। उन्हें देवी मानकर पूजने के बजाय इंसान समझकर उनका सम्मान करना अधिक आवश्यक है।
2. लड़कियों को शिक्षित करें
अगर हम सच में माता सरस्वती की पूजा करना चाहते हैं, तो हमें हर लड़की को शिक्षित करने की जिम्मेदारी लेनी होगी। शिक्षा ही समाज में बदलाव ला सकती है।
3. महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करें
सरकार और समाज को मिलकर ऐसा वातावरण बनाना होगा जहां महिलाएं सुरक्षित महसूस करें। पुलिस व्यवस्था को मजबूत बनाना, कड़े कानून लागू करना और न्याय प्रणाली को तेज़ करना आवश्यक है।
4. लैंगिक समानता को बढ़ावा दें
हर क्षेत्र में महिलाओं को बराबर का अवसर देना चाहिए, चाहे वह नौकरी हो, राजनीति हो, खेल हो, या अन्य कोई क्षेत्र। जब तक महिलाओं को समान अवसर नहीं मिलेंगे, तब तक समाज में वास्तविक बदलाव नहीं आएगा।
5. दोहरे मापदंड खत्म करें
हमें समाज की इस दोहरी मानसिकता को खत्म करना होगा, जहां एक ओर देवी की पूजा होती है और दूसरी ओर महिलाओं को अपमानित किया जाता है। महिलाओं का सम्मान सिर्फ त्योहारों तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि हर दिन उनका सम्मान किया जाना चाहिए।
निष्कर्ष
माता सरस्वती की पूजा केवल एक मूर्ति तक सीमित नहीं होनी चाहिए। हमें असली नारी को भी उतना ही सम्मान देना चाहिए। अगर हम सच में देवी सरस्वती की पूजा करते हैं, तो हमें समाज में महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए भी कार्य करना होगा। हमें सावित्रीबाई फुले के दिखाए रास्ते पर चलकर समाज में समानता, शिक्षा और नारी सम्मान को बढ़ावा देना होगा।
इस वसंत पंचमी, हम केवल मूर्ति की पूजा न करें, बल्कि हर नारी का सम्मान करने का संकल्प लें। जब हर नारी सुरक्षित होगी, शिक्षित होगी और समान अधिकार पाएगी, तभी असली सरस्वती पूजा होगी।