मध्यप्रदेश में रेत माफिया के हौसले लगातार बुलंद होते जा रहे हैं। हाल ही में भिंड जिले में कलेक्टर पर हुए हमले के बाद अब रीवा जिले में पत्रकारों को भी खुलेआम निशाना बनाया जा रहा है। ताजा मामला रीवा जिले के गड्डी रोड का है, जहां अवैध रेत खनन और ओवरलोडिंग हाईवा की कवरेज कर रहे पत्रकार पर रेत माफिया ने बेरहमी से हमला कर दिया।
पत्रकार पर हमला: लोकतंत्र पर खतरा
रीवा जिले के वरिष्ठ पत्रकार और इंडिया न्यूज के जिला संवाददाता आशुतोष द्विवेदी इस घटना के शिकार हुए। वे गड्डी रोड पर ओवरलोडेड हाईवा की रिपोर्टिंग कर रहे थे, तभी अचानक बिना नंबर प्लेट की सफेद गाड़ी से आए रेत माफिया और उनके गुर्गों ने उन पर हमला बोल दिया। पत्रकार को बुरी तरह पीटा गया, गालियां दी गईं और जान से मारने की धमकी दी गई।
गनीमत रही कि पत्रकार किसी तरह बचकर वहां से निकलने में सफल रहे और उन्होंने इस घटना का वीडियो रिकॉर्ड कर लिया। इस वीडियो में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि हमलावर खुलेआम पत्रकार को धमका रहे हैं और प्रशासन की निष्क्रियता का मजाक उड़ा रहे हैं।
मध्यप्रदेश में रेत माफिया का बढ़ता साम्राज्य
मध्यप्रदेश में रेत माफिया का आतंक कोई नया नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में रेत खनन माफिया ने प्रशासन, पुलिस और पत्रकारों को खुलेआम चुनौती देना शुरू कर दिया है।
- सरकारी अफसरों पर हमले: कई बार रेत माफिया सरकारी अधिकारियों पर भी हमला कर चुके हैं। भिंड जिले में कलेक्टर पर हुआ हमला इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।
- पत्रकारों को धमकाने की घटनाएं: पत्रकारों पर हमले बढ़ रहे हैं, क्योंकि वे रेत माफिया की सच्चाई उजागर करते हैं।
- अवैध खनन से सरकारी राजस्व को नुकसान: अवैध रेत खनन से सरकार को करोड़ों रुपये के राजस्व का नुकसान होता है।
- प्रशासन की निष्क्रियता: प्रशासन इन मामलों में केवल कागजी कार्रवाई कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेता है, जिससे माफिया के हौसले और बढ़ जाते हैं।
प्रशासन की भूमिका सवालों के घेरे में
घटना के तुरंत बाद पत्रकार आशुतोष द्विवेदी ने बिछिया थाने में मामला दर्ज कराया, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि प्रशासन इस मामले में क्या कार्रवाई करेगा? प्रदेश में पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत इसके विपरीत है।
मुख्यमंत्री मोहन यादव ने पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर कई घोषणाएं की हैं, लेकिन उनके ही उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला के गृह जिले में रेत माफिया का बेखौफ आतंक जारी है। ऐसा प्रतीत होता है कि प्रशासन ने इन्हें खुली छूट दे रखी है, जिससे वे अब पत्रकारों को भी अपना निशाना बना रहे हैं।
क्या प्रशासन चूड़ियां पहनकर बैठा है?
लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहलाने वाले पत्रकारों पर हमला किसी भी लोकतंत्र के लिए शर्मनाक है। प्रशासन की ढिलाई के कारण रेत माफिया के हौसले इतने बुलंद हो गए हैं कि वे अब खुलेआम पत्रकारों पर हमला कर रहे हैं।
अब सवाल यह उठता है कि क्या प्रशासन इस हमले पर कोई ठोस कार्रवाई करेगा या हमेशा की तरह यह मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा? सरकार और पुलिस प्रशासन को इस मामले में तत्काल सख्त कदम उठाने की ज़रूरत है, ताकि भविष्य में पत्रकारों पर इस तरह के हमले न हों। पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करना प्रशासन की प्राथमिकता होनी चाहिए, वरना लोकतंत्र के इस महत्वपूर्ण स्तंभ की स्वतंत्रता पर गंभीर खतरा मंडराने लगेगा।
मध्यप्रदेश में रेत माफिया पर क्यों नहीं लग रही लगाम?
मध्यप्रदेश में रेत माफिया का आतंक कोई नई बात नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में इस अवैध व्यापार ने अपना जाल इतना फैला लिया है कि स्थानीय प्रशासन भी इसके आगे बेबस नजर आता है।
1. प्रशासन की मिलीभगत
अवैध रेत खनन का बड़ा कारण प्रशासन की निष्क्रियता और भ्रष्टाचार है। पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत से माफिया बिना किसी डर के अपना कारोबार चला रहे हैं।
2. राजनीतिक संरक्षण
कई बार देखने में आया है कि रेत माफिया को बड़े राजनेताओं का संरक्षण प्राप्त होता है। यही कारण है कि इन पर कार्रवाई करने से पहले प्रशासन कई बार सोचता है।
3. सख्त कानूनों का अभाव
हालांकि खनन कानून पहले से मौजूद हैं, लेकिन इनके क्रियान्वयन में भारी कमी है। अगर सरकार इन कानूनों को सख्ती से लागू करे, तो माफिया का आतंक कम हो सकता है।
पत्रकारों की सुरक्षा के लिए क्या होना चाहिए?
पत्रकार लोकतंत्र के प्रहरी होते हैं, लेकिन अगर वे ही सुरक्षित नहीं रहेंगे, तो सच्चाई सामने कैसे आएगी? पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाने जरूरी हैं:
- पत्रकार सुरक्षा कानून लागू किया जाए – पत्रकारों की सुरक्षा के लिए सख्त कानून बनाए जाने चाहिए।
- हमलावरों पर कठोर कार्रवाई हो – हमलावरों पर कठोर कार्रवाई की जाए, ताकि भविष्य में कोई पत्रकारों पर हमला करने की हिम्मत न कर सके।
- प्रशासन की जवाबदेही तय हो – अगर प्रशासन किसी मामले में लापरवाही बरतता है, तो उसके खिलाफ भी कार्रवाई होनी चाहिए।
- 24×7 हेल्पलाइन शुरू की जाए – पत्रकारों के लिए एक विशेष हेल्पलाइन नंबर शुरू किया जाए, जहां वे अपनी शिकायत दर्ज करा सकें।
- पत्रकार सुरक्षा कोष बने – हमलों का शिकार हुए पत्रकारों की आर्थिक मदद के लिए एक सुरक्षा कोष बनाया जाए।
निष्कर्ष
रीवा में पत्रकार पर हमला केवल एक व्यक्ति पर हमला नहीं है, बल्कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतंत्र के मूल्यों पर हमला है। अगर सरकार और प्रशासन इस मामले में सख्त कार्रवाई नहीं करते, तो यह सिलसिला आगे भी जारी रहेगा।
मध्यप्रदेश में रेत माफिया का आतंक दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है और अब यह जरूरी हो गया है कि सरकार इस पर तुरंत रोक लगाए। पत्रकारों की सुरक्षा केवल एक व्यक्ति की सुरक्षा नहीं, बल्कि पूरे समाज की सुरक्षा का मामला है। इसलिए सरकार को इसे गंभीरता से लेना चाहिए और दोषियों को जल्द से जल्द कड़ी सजा दिलवानी चाहिए।
अगर आज पत्रकारों की आवाज दबा दी गई, तो कल कोई भी सच बोलने की हिम्मत नहीं करेगा। क्या हम एक ऐसे समाज की कल्पना कर सकते हैं जहां सच बोलना ही सबसे बड़ा अपराध बन जाए?