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    Home»Breaking News»निजीकरण के विरोध में विद्युत कर्मचारियों का गुस्सा बढ़ा: छंटनी का खतरा और कर्मचारियों का विरोध!
    Breaking News

    निजीकरण के विरोध में विद्युत कर्मचारियों का गुस्सा बढ़ा: छंटनी का खतरा और कर्मचारियों का विरोध!

    adminBy adminJanuary 19, 2025No Comments6 Mins Read
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    लखनऊ। उत्तर प्रदेश में बिजली कर्मचारियों और अभियंताओं के बीच निजीकरण को लेकर गुस्सा और आक्रोश बढ़ता जा रहा है। निजीकरण के बाद कर्मचारियों की छंटनी और आउटसोर्स कर्मियों की बड़े पैमाने पर निकासी की खबरें कर्मचारियों के बीच असंतोष और विरोध की वजह बन रही हैं। इस विरोध का असर लगातार चौथे दिन प्रदेश भर में देखने को मिला, जब विद्युत कर्मचारी संघ के संघर्ष समिति ने काली पट्टी बांधकर विरोध प्रदर्शन किया और इस विरोध सभा का आयोजन किया।

    संघर्ष समिति ने बिजली कर्मचारियों की छंटनी को लेकर गंभीर चिंता जताई है और कहा है कि निजीकरण के बाद लाखों कर्मचारियों की नौकरी खतरे में पड़ सकती है। उनके अनुसार, निजीकरण के पहले ही आउटसोर्स कर्मियों की छंटनी की जा रही है, जिससे कर्मचारियों का गुस्सा और बढ़ गया है। यह विरोध पूरे प्रदेश में फैला हुआ है, और काली पट्टी बांधकर विरोध प्रदर्शन लगातार जारी है।


    निजीकरण के बाद छंटनी का खतरा

    विद्युत कर्मचारी संघ के संघर्ष समिति के पदाधिकारियों का कहना है कि निजीकरण के बाद बड़े पैमाने पर बिजली कर्मचारियों, जूनियर इंजीनियरों और अभियंताओं की छंटनी की जाएगी। संघर्ष समिति के नेताओं ने यह भी कहा कि प्रदेश के विभिन्न विद्युत वितरण निगमों में कर्मचारियों के बड़े पदों को समाप्त किया जाएगा, जिससे छंटनी का खतरा और बढ़ जाएगा।

    उदाहरण के तौर पर, संघर्ष समिति ने बताया कि पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम में कर्मचारियों के 44,330 पद हैं, जबकि दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम में 33,161 पद हैं। निजीकरण के बाद ये सभी 77,491 पद समाप्त हो जाएंगे। इससे कर्मचारियों की छंटनी की संभावना और बढ़ जाएगी। इसमें 50 हजार संविदा कर्मी, 23,818 तकनीशियन, 2,154 जूनियर इंजीनियर और 1,518 अभियंता शामिल हैं।

    संघर्ष समिति ने यह भी आरोप लगाया कि निजीकरण से पहले ही संविदा कर्मियों की छंटनी की जा रही है, जिससे बिजली कर्मचारियों में गुस्सा और बढ़ गया है। उन्होंने यह भी कहा कि दिल्ली और उड़ीसा जैसे राज्यों में पहले ही बड़े पैमाने पर कर्मचारियों को वीआरएस देकर हटाया जा चुका है। इन घटनाओं ने कर्मचारियों के बीच असुरक्षा की भावना पैदा कर दी है।


    वीआरएस और अर्ली वीआरएस का खतरा

    संघर्ष समिति ने निजीकरण की प्रक्रिया के तहत नियुक्त किए गए ट्रांजैक्शन कंसल्टेंट द्वारा तैयार किए गए आरएफपी (रिक्वेस्ट फॉर प्रोपोजल) दस्तावेज का हवाला दिया, जिसमें अर्ली वीआरएस (अर्ली रिटायरमेंट स्कीम) का उल्लेख किया गया है। सामान्यत: वीआरएस 30-35 साल की सेवा वाले कर्मचारियों के लिए होता है, लेकिन अर्ली वीआरएस से यह साफ संकेत मिलता है कि बहुत कम सेवा वाले कर्मचारियों को भी निकाला जा सकता है।

    यह कर्मचारियों के लिए एक और चिंता का कारण बन गया है, क्योंकि इससे यह प्रतीत होता है कि कर्मचारियों को बिना किसी पर्याप्त कारण के नौकरी से निकाला जा सकता है। इससे कर्मचारियों के मन में असुरक्षा की भावना और बढ़ी है, और वे अपनी नौकरी के भविष्य को लेकर चिंतित हैं।


    निजीकरण का विरोध

    बिजली कर्मचारियों का यह विरोध केवल एक दिन का नहीं, बल्कि लगातार कई दिनों से जारी है। 18 जनवरी से शुरू हुआ यह विरोध प्रदर्शन अब चौथे दिन तक जारी है। संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने कहा कि जब तक निजीकरण की प्रक्रिया को पूरी तरह से रोका नहीं जाता, तब तक उनका विरोध जारी रहेगा। उन्होंने यह भी कहा कि यदि उनकी मांगों को नजरअंदाज किया गया, तो वे और भी बड़े विरोध प्रदर्शन करेंगे।

    आज, 19 जनवरी को प्रदेश भर के विभिन्न शहरों जैसे वाराणसी, आगरा, गोरखपुर, प्रयागराज, मिर्जापुर, आजमगढ़, बस्ती, अलीगढ़, मथुरा, एटा, कानपुर, मेरठ, गाजियाबाद, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बुलंदशहर, मुरादाबाद, बरेली, देवी पाटन, सुल्तानपुर, अयोध्या, झांसी, बांदा, उरई, ललितपुर, हमीरपुर, महोबा, पनकी, हरदुआगंज, परीक्षा, जवाहरपुर, ओबरा और अनपरा में बड़ी सभाएं की गईं। इन सभाओं में कर्मचारियों ने काली पट्टी बांधकर निजीकरण के विरोध में अपनी आवाज उठाई और अपनी मांगों को सरकार के सामने रखा।


    निजीकरण के प्रभाव

    निजीकरण का सबसे बड़ा असर कर्मचारियों की नौकरी पर पड़ने वाला है। जहां एक ओर निजी कंपनियां अपने मुनाफे के लिए काम करती हैं, वहीं दूसरी ओर सरकारी कंपनियों में काम करने वाले कर्मचारियों को सुरक्षा और स्थिरता का एहसास होता है। निजीकरण के बाद कर्मचारियों के लिए यह सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। कर्मचारियों के अनुसार, निजीकरण के बाद बिजली वितरण कंपनियों का मुख्य उद्देश्य मुनाफा बढ़ाना होगा, न कि कर्मचारियों की भलाई। इससे कर्मचारियों को बेहतर वेतन, सुविधाएं और कामकाजी वातावरण मिलने की संभावना कम हो सकती है।

    इसके अलावा, निजीकरण के बाद बिजली सेवाओं की गुणवत्ता पर भी असर पड़ सकता है। सरकारी कंपनियां आमतौर पर जनता की भलाई के लिए काम करती हैं, जबकि निजी कंपनियों का मुख्य उद्देश्य मुनाफा होता है। इससे बिजली वितरण में भ्रष्टाचार, लापरवाही और अनियमितताएं बढ़ सकती हैं, जो आम जनता के लिए समस्याएं उत्पन्न कर सकती हैं।


    संघर्ष समिति की मांगें

    संघर्ष समिति ने अपनी मांगों को लेकर सरकार के सामने कई बिंदु रखे हैं। उनकी मुख्य मांगें निम्नलिखित हैं:

    1. निजीकरण की प्रक्रिया को रोका जाए: संघर्ष समिति का कहना है कि निजीकरण से कर्मचारियों की छंटनी और नौकरी की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। इसलिए, निजीकरण की प्रक्रिया को तत्काल रोक दिया जाए।
    2. संविदा कर्मियों की छंटनी रोकी जाए: समिति ने यह भी कहा है कि निजीकरण से पहले ही संविदा कर्मियों की छंटनी की जा रही है, जिससे कर्मचारियों में असंतोष फैल रहा है। यह छंटनी तत्काल रोकी जाए।
    3. कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा की जाए: संघर्ष समिति ने सरकार से यह भी अपील की है कि कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा की जाए और उन्हें नौकरी की सुरक्षा और स्थिरता प्रदान की जाए।
    4. विभिन्न शहरों में विरोध प्रदर्शन का समर्थन: संघर्ष समिति ने प्रदेश भर में किए जा रहे विरोध प्रदर्शनों का समर्थन किया है और सरकार से मांग की है कि वह कर्मचारियों की समस्याओं का समाधान निकाले।

    निष्कर्ष

    उत्तर प्रदेश में बिजली कर्मचारियों का विरोध निजीकरण के खिलाफ तेज हो गया है। कर्मचारियों का कहना है कि निजीकरण से उनकी नौकरी और अधिकारों को खतरा है, और वे इसे रोकने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यदि सरकार उनकी मांगों को नजरअंदाज करती है, तो यह विरोध और भी तेज हो सकता है। अब यह देखना होगा कि सरकार इस विरोध को किस तरह से संभालती है और कर्मचारियों की चिंताओं का समाधान कैसे करती है।

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