प्रयागराज का महाकुंभ, हिन्दू धर्म का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है, जो हर बार विशेष धार्मिक, सांस्कृतिक, और सामाजिक गतिविधियों के लिए दुनिया भर में आकर्षण का केंद्र बनता है। इस महाकुंभ में लाखों श्रद्धालु अपनी आस्थाओं और विश्वासों के साथ गंगा-यमुना संगम में डुबकी लगाते हैं, जबकि कई लोग इसे एक मौका मानते हैं अपने जीवन को धार्मिक दृष्टि से पुनः पुनः स्थापित करने का। लेकिन, जब इस महाकुंभ में सनातन धर्म की किसी परंपरा का पालन करते हुए एक 13 वर्षीय लड़की को दान कर दिया जाता है, तो यह सवाल उठता है—क्या यह धार्मिक परंपरा है, या सिर्फ एक खतरनाक सांस्कृतिक धारा है?
हाल ही में, यूपी के आगरा से आए दिनेश ढाकरे और उनकी पत्नी रीमा ने अपनी 13 साल की बेटी राखी को जूना अखाड़े में दान कर दिया। इसे सनातन धर्म की राह पर एक पवित्र कृत्य के रूप में प्रस्तुत किया गया। लेकिन क्या यह सही है? क्या हम अपने बच्चों को धार्मिक उद्देश्य के नाम पर इस तरह की परंपराओं के हवाले कर सकते हैं? आइए, हम इस पर विस्तार से चर्चा करते हैं।
सनातन धर्म और परंपराएं
सनातन धर्म, जिसे हम हिन्दू धर्म के नाम से भी जानते हैं, अपनी विविधता, जटिलता, और सदियों पुरानी परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है। यह धर्म एक लचीला और समावेशी दृष्टिकोण अपनाता है, जो हर व्यक्ति के आत्मज्ञान की यात्रा में सहायक होता है। लेकिन, समय के साथ कुछ परंपराएं और रीति-रिवाजों ने विवादों का रूप भी ले लिया है।
सनातन धर्म की परंपराओं में ‘दान’ एक बहुत ही महत्वपूर्ण और पवित्र कृत्य माना जाता है। दान, विशेष रूप से गरीबों और जरूरतमंदों को दिया जाता है, ताकि पुण्य अर्जित किया जा सके। इस दान के विभिन्न रूप हैं, जैसे: धार्मिक ग्रंथों का दान, गाय का दान, तांबे की थाली का दान, आदि।
लेकिन, जब यह दान किसी मानव जीवन, विशेष रूप से एक छोटे बच्चे का होता है, तो यह एक जटिल और विवादास्पद मामला बन जाता है। यही हाल इस 13 वर्षीय लड़की राखी के साथ हुआ, जिसे उसके माता-पिता ने जूना अखाड़े में दान कर दिया।
क्या है जूना अखाड़ा?
जूना अखाड़ा भारतीय हिन्दू साधु-संतों का एक प्रमुख धार्मिक संगठन है, जो मुख्य रूप से अर्धकुंभ, कुम्भ, और अन्य धार्मिक आयोजनों में हिस्सा लेता है। यह अखाड़ा हिन्दू धर्म के संतों और साधुओं का एक समूह है जो विशेष रूप से दीक्षा प्राप्त करने और योगाभ्यास करने के लिए जाना जाता है। जूना अखाड़े में शामिल साधु, अपने जीवन को तपस्वी तरीके से जीते हैं और समाज से बाहर रहकर अपने धर्म और साधना में लीन रहते हैं।
ऐसे में यदि किसी व्यक्ति को किसी धार्मिक उद्देश्य के लिए दान किया जाता है, तो यह परंपरा और विश्वास के नाम पर होता है। लेकिन, यह स्पष्ट रूप से यह सवाल उठाता है कि क्या एक बच्ची को इस तरह के कृत्य का हिस्सा बनाना सही है?
राखी का दान: क्या यह सही है?
दिनेश ढाकरे और रीमा ने अपनी 13 साल की बेटी राखी को जूना अखाड़े में दान कर दिया। इस कृत्य के बाद राखी का नाम बदलकर ‘गौरी’ रखा गया। अब यह सवाल उठता है कि क्या इस प्रकार का दान उचित है? क्या बच्चों को इस तरह की धार्मिक परंपराओं के नाम पर बलि चढ़ाना उचित है?
1. बच्चों के अधिकार:
हर बच्चे को अपने जीवन के बारे में निर्णय लेने का अधिकार होता है। इस निर्णय में उसकी उम्र और उसके मानसिक विकास का भी अहम योगदान होता है। 13 वर्ष की लड़की, जो अभी किशोरावस्था में है, वह अपने जीवन के महत्वपूर्ण निर्णय खुद लेने के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार नहीं होती। ऐसे में उसे किसी धार्मिक कृत्य का हिस्सा बनाना उसके अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है।
2. सामाजिक और मानसिक प्रभाव:
बच्चों पर धर्म या परंपरा का अत्यधिक दबाव डालने से उनकी मानसिक स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। वे बिना समझे-समझे किसी भी परंपरा को अपना सकते हैं, लेकिन यह जरूरी नहीं कि वे उसे समझ पाएं। यह बच्चों की मानसिक स्वतंत्रता और विकास के लिए खतरनाक हो सकता है। एक लड़की को इस तरह के धार्मिक कृत्य के लिए दान करना, बिना उसकी सहमति के, उस पर मानसिक दबाव डाल सकता है।
3. धार्मिक परंपराओं का सही उपयोग:
हमारे समाज में कई प्राचीन और गहरे धार्मिक परंपराएं हैं। हालांकि, ये परंपराएं समय के साथ विकसित होनी चाहिए, ताकि वे हर पीढ़ी के लिए समझ में आने योग्य और उपयुक्त बन सकें। बच्चों को परंपराओं का हिस्सा बनाना कोई गलत बात नहीं है, लेकिन यह निश्चित रूप से उनके अधिकारों और स्वतंत्रता के भीतर होना चाहिए। जब हम किसी बच्चे को अपनी धार्मिक आस्थाओं के नाम पर दान देते हैं, तो यह हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि वह बच्चा इस निर्णय को समझ पाता है और इसमें उसकी सहमति शामिल है।
सनातन धर्म और लंपटता का आरोप
यहां पर एक और महत्वपूर्ण सवाल उठता है: क्या इस प्रकार के कृत्य को सनातन धर्म की लंपटता कहना सही है? धर्म, विशेष रूप से सनातन धर्म, का उद्देश्य आत्मज्ञान, प्रेम, करुणा और दया की शिक्षा देना है। यह किसी भी रूप में बुराई, अत्याचार, या लंपटता को बढ़ावा नहीं देता है। लेकिन, जब धर्म के नाम पर किसी की स्वतंत्रता का उल्लंघन होता है, तो यह निश्चित रूप से धर्म के मूल उद्देश्य से मेल नहीं खाता।
इस प्रकार के कृत्य, जो बच्चों को धार्मिक उद्देश्य के लिए दान करने का रूप ले लेते हैं, उन्हें किसी भी स्थिति में उचित नहीं ठहराया जा सकता। इन कृत्यों को धर्म के नाम पर लंपटता कहना भी गलत नहीं होगा, क्योंकि इससे धार्मिक अनुशासन का उल्लंघन होता है और इसे केवल धर्म की संकीर्ण परिभाषा से बाहर एक सामाजिक क्रूरता के रूप में देखा जाना चाहिए।
समाज में इस कृत्य की आलोचना
वर्तमान समय में, जब समाज में जागरूकता बढ़ी है और हर व्यक्ति को अपने अधिकारों के बारे में बेहतर समझ है, इस प्रकार के कृत्य पर कड़ी आलोचना होनी स्वाभाविक है। समाज के कई वर्गों ने इस घटना को अनुचित और असंवेदनशील करार दिया है। बच्चे को दान करने को लेकर कई मानवाधिकार संगठन और महिला संगठन भी चिंतित हैं, क्योंकि यह बच्चों के संरक्षण और उनके अधिकारों के खिलाफ है।
साथ ही, कुछ लोग यह भी मानते हैं कि ऐसी घटनाओं से हिन्दू धर्म की छवि को नुकसान होता है, क्योंकि धर्म के नाम पर ऐसे कृत्य समाज में गलत संदेश फैलाते हैं।
निष्कर्ष
प्रयागराज महाकुंभ में 13 वर्षीय लड़की राखी का दान करना और उसका नाम बदलकर ‘गौरी’ रखना, एक विवादित और खतरनाक कृत्य है। यह हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हमें धर्म और परंपराओं के नाम पर बच्चों की स्वतंत्रता और अधिकारों का उल्लंघन करना चाहिए।
धर्म का उद्देश्य आत्मज्ञान और समाज में शांति का प्रचार करना है, न कि बच्चों और व्यक्तियों के अधिकारों का हनन। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि धार्मिक परंपराएं समय के साथ विकसित हों और हर पीढ़ी के लिए सही, उपयुक्त, और समझ में आने योग्य बनें। इस प्रकार के कृत्यों को समाप्त करना होगा ताकि हम बच्चों को एक सुरक्षित और स्वतंत्र जीवन दे सकें।
यह घटना हमें यह भी याद दिलाती है कि हमें अपनी परंपराओं की पुनः समीक्षा करनी होगी, ताकि हर व्यक्ति की स्वायत्तता, स्वतंत्रता और अधिकार की रक्षा की जा सके।