दिल्ली चुनाव: देश की राजधानी का भविष्य तय करने वाला महासंग्राम!

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दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 का बिगुल बज चुका है। यह चुनाव न केवल दिल्ली के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि दिल्ली भारत की राजधानी है। पिछले दस वर्षों से आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार यहां सत्ता में है, और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ टकराव किसी से छिपा नहीं है। यह टकराव केवल राजनीतिक नहीं है, बल्कि इसका सीधा असर दिल्लीवासियों के जीवन पर भी पड़ा है।

दिल्ली: केंद्र और राज्य के बीच खींचतान का केंद्र

दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश है, लेकिन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का मानना है कि उन्हें अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों की तरह अधिक अधिकार मिलने चाहिए। उनकी तुलना अक्सर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से की जाती है, जो केंद्र सरकार के खिलाफ मुखर रही हैं। हालांकि, यह खींचतान केवल राजनीतिक सीमाओं तक सीमित नहीं है। इसका प्रभाव प्रशासनिक कामकाज, विकास योजनाओं और कानून-व्यवस्था पर भी पड़ता है।

चुनाव से पहले दिल्ली का बदलता परिदृश्य

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान होना है, लेकिन चुनाव से पहले माहौल काफी गर्म हो चुका है। हरियाणा की सीमा पर किसानों का धरना कमजोर पड़ने के बाद दिल्ली में पंजाब नंबर वाले वाहनों की संख्या में अचानक वृद्धि देखी गई है। यह इस बात का संकेत है कि पंजाब की राजनीति का असर भी दिल्ली चुनाव पर पड़ सकता है।

पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार है, और वहां खालिस्तान समर्थकों की गतिविधियों को लेकर केंद्रीय एजेंसियों ने पहले ही चेतावनी जारी की है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता संदीप दीक्षित ने दिल्ली में पंजाब नंबर वाले वाहनों को लेकर चिंता जताई है और दिल्ली पुलिस से इन वाहनों की जांच करने का आग्रह किया है।

ध्रुवीकरण और हिंदू-मुस्लिम राजनीति का प्रभाव

दिल्ली चुनाव में हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण भी अपने चरम पर है। आम आदमी पार्टी के मुस्लिम नेताओं ने खुले तौर पर कहा है कि यदि मुस्लिम वोट विभाजित हुए, तो भाजपा की जीत तय है। इसके चलते उन्होंने मुस्लिम मतदाताओं को कांग्रेस के उम्मीदवारों से सावधान रहने की सलाह दी है।

इस बार कांग्रेस ने भी पूरी ताकत से चुनावी मैदान में उतरने का फैसला किया है। राहुल गांधी की सक्रियता ने कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में नया जोश भर दिया है। खासकर नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र में, जहां अरविंद केजरीवाल स्वयं उम्मीदवार हैं, कांग्रेस के उम्मीदवार संदीप दीक्षित ने बड़ी संख्या में मुस्लिम मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित किया है।

अरविंद केजरीवाल के सामने चुनौती

पिछले दो विधानसभा चुनावों में अरविंद केजरीवाल ने नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र से बड़ी जीत हासिल की थी। लेकिन इस बार उनके सामने कांग्रेस के संदीप दीक्षित और भाजपा के प्रवेश वर्मा ने बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। प्रवेश वर्मा, जो पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के पुत्र हैं, अपने समर्थकों के साथ यह दावा कर रहे हैं कि इस बार केजरीवाल न केवल मुख्यमंत्री पद से, बल्कि विधायक पद से भी हाथ धो बैठेंगे।

कांग्रेस की वापसी की कोशिश

2015 और 2020 के चुनावों में कांग्रेस को दिल्ली में एक भी सीट नहीं मिली थी। लेकिन इस बार पार्टी ने पूरी ताकत झोंक दी है। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के प्रचार अभियान से कांग्रेस को उम्मीद है कि वह कुछ सीटें जीतने में कामयाब होगी।

कांग्रेस के लिए यह चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली सरकार को दोबारा सत्ता में नहीं देखना चाहती। कांग्रेस के नेताओं का मानना है कि दिल्ली में आप सरकार की नीतियां न केवल राज्य के विकास में बाधा बनी हैं, बल्कि इससे राष्ट्रीय राजनीति पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।

एआईएमआईएम और सांप्रदायिक राजनीति का खेल

दिल्ली चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने भी अपने उम्मीदवार उतारे हैं। इनमें से कई उम्मीदवारों पर सांप्रदायिक दंगे भड़काने के गंभीर आरोप हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि एआईएमआईएम का प्रदर्शन दिल्ली के चुनावी समीकरणों को कैसे प्रभावित करता है।

दिल्ली चुनाव और राष्ट्रीय एकता पर प्रभाव

दिल्ली चुनाव केवल एक राज्य का चुनाव नहीं है। यह देश की एकता और अखंडता के लिए भी एक परीक्षा है। राजधानी होने के नाते, यहां की राजनीतिक गतिविधियां पूरे देश पर प्रभाव डालती हैं। चाहे वह हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण हो, खालिस्तान समर्थकों की गतिविधियां हों, या केंद्र और राज्य सरकार के बीच टकराव, दिल्ली का चुनाव हर दृष्टि से महत्वपूर्ण है।

निष्कर्ष

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 केवल राजनीतिक दलों के लिए सत्ता की लड़ाई नहीं है। यह एक ऐसा महासंग्राम है, जो न केवल दिल्ली के भविष्य को तय करेगा, बल्कि देश की राजनीति की दिशा भी निर्धारित करेगा। राष्ट्रहित सर्वोपरि है, और यह हर राजनीतिक दल की जिम्मेदारी है कि वे दिल्ली की जनता को बेहतर प्रशासन और विकास का भरोसा दें।

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