अमर शहीद जगदेव प्रसाद भारतीय राजनीति के उन क्रांतिकारी नेताओं में से एक थे जिन्होंने समाज में शोषित, वंचित और दलित वर्गों के उत्थान के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। उन्हें ‘बिहार के लेनिन’ के नाम से भी जाना जाता है। उनका जीवन, संघर्ष, और बलिदान एक प्रेरणादायक कहानी है जो आज भी सामाजिक न्याय और समानता की लड़ाई लड़ने वालों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
जन्म और प्रारंभिक जीवन
जगदेव प्रसाद का जन्म 2 फरवरी 1922 को बिहार के जहानाबाद जिले के कुर्था प्रखंड के कुरहारी ग्राम में हुआ था। वे एक साधारण किसान परिवार में जन्मे थे, लेकिन बचपन से ही उनमें असाधारण नेतृत्व क्षमता थी। शिक्षा के प्रति उनकी रुचि बचपन से ही थी, और उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही प्राप्त की। इसके बाद वे उच्च शिक्षा के लिए पटना विश्वविद्यालय गए, जहाँ उन्होंने राजनीति और समाजशास्त्र का गहन अध्ययन किया।
राजनीतिक यात्रा की शुरुआत
जगदेव बाबू का राजनीतिक सफर समाजवाद की विचारधारा से शुरू हुआ। वे सोशलिस्ट पार्टी से जुड़े और ‘जनता’ नामक समाचार पत्र का संपादन करने लगे। यह समाचार पत्र वंचित वर्गों की आवाज़ बनने का काम करता था। धीरे-धीरे, उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई और वंचितों के अधिकारों के लिए संघर्ष तेज़ कर दिया।
बाद में, उन्होंने ‘शोषित दल’ नामक अपनी एक अलग पार्टी बनाई, जिसका मुख्य उद्देश्य समाज के शोषित, दलित और वंचित वर्गों के अधिकारों के लिए संघर्ष करना था।
शोषित समाज की आवाज़
जगदेव बाबू ने समाज के पिछड़े और वंचित वर्गों के हक की लड़ाई को हमेशा प्राथमिकता दी। उन्होंने कहा था:
“पचासी परसेंट शोषितों को राजकीय सत्ता में उनका हिस्सा मिलना चाहिए।”
उनका यह नारा समाज के कमजोर वर्गों को संगठित करने में अहम भूमिका निभाने लगा। उन्होंने सामाजिक असमानता के खिलाफ आवाज़ उठाई और राजनीतिक वर्चस्व के खिलाफ आंदोलन खड़ा किया।
जगदेव प्रसाद की 6 सूत्री मांगें
जगदेव बाबू ने समाज सुधार के लिए 6 सूत्री मांगें प्रस्तुत कीं, जो उनके संघर्ष के मूल आधार बने:
- भूमि सुधार – जमींदारी प्रथा को समाप्त कर गरीब किसानों को भूमि प्रदान करना।
- शिक्षा और स्वास्थ्य – सभी को मुफ्त शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना।
- रोजगार के अवसर – गरीबों और वंचित वर्गों के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा करना।
- सामाजिक न्याय – समाज में सामाजिक और आर्थिक समानता को स्थापित करना।
- राजनीतिक अधिकार – गरीबों और दलितों को राजनीतिक अधिकार देना और उन्हें सत्ता में भागीदारी सुनिश्चित करना।
- आर्थिक समानता – संपत्ति के समान वितरण और गरीबी उन्मूलन के लिए काम करना।
1974 का सत्याग्रह और शहादत
अपनी 6 सूत्री मांगों को लेकर 5 सितंबर 1974 को जगदेव बाबू ने सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया। यह आंदोलन बिहार में व्यापक रूप से फैलने लगा, जिससे सत्ता में बैठे लोग घबरा गए।
इस सत्याग्रह के दौरान बिहार पुलिस ने उन पर गोली चला दी, जिससे उनकी मौके पर ही मृत्यु हो गई।
उनकी शहादत ने बिहार और पूरे भारत में एक नई राजनीतिक चेतना को जन्म दिया। आज भी वे ‘अमर शहीद’ के रूप में याद किए जाते हैं।
जगदेव प्रसाद की प्रमुख उपलब्धियाँ
1. मतदान पहचान पत्र की पहल
उनके प्रयासों से दलित, वंचित और शोषित वर्गों को पहली बार वोटर आईडी कार्ड मिला, जिससे वे लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने लगे।
2. शोषित समाज के अधिकारों की लड़ाई
उन्होंने हमेशा समाज के शोषित वर्गों के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाई और उनके हितों की रक्षा के लिए कई आंदोलनों का नेतृत्व किया।
3. भूमि सुधार आंदोलन
वे जमींदारी प्रथा के घोर विरोधी थे और उन्होंने गरीबों को ज़मीन दिलाने के लिए संघर्ष किया।
4. निःशुल्क शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की मांग
उनका मानना था कि समाज के हर व्यक्ति को शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएँ मुफ्त में मिलनी चाहिए।
5. राजनीतिक अधिकारों के लिए संघर्ष
उन्होंने राजनीतिक स्तर पर दलित और पिछड़े वर्गों को उनका अधिकार दिलाने के लिए कई आंदोलन किए।
6. सामाजिक न्याय की लड़ाई
वे सामाजिक असमानता और भेदभाव के घोर विरोधी थे। उन्होंने जातिवाद और आर्थिक असमानता के खिलाफ आवाज़ बुलंद की।
जगदेव बाबू की विरासत और आज का भारत
आज जब हम सामाजिक न्याय की बात करते हैं, तो जगदेव बाबू की विचारधारा हमारे लिए मार्गदर्शन का कार्य करती है। उन्होंने जो संघर्ष किया, वह आज भी हमें प्रेरणा देता है।
उनका बलिदान व्यर्थ नहीं गया, बल्कि उनकी विचारधारा ने कई राजनीतिक और सामाजिक सुधारों को जन्म दिया। आज भी कई सामाजिक संगठनों और राजनीतिक दलों द्वारा उनकी विचारधारा को आगे बढ़ाया जा रहा है।
निष्कर्ष
अमर शहीद जगदेव प्रसाद सिर्फ एक व्यक्ति नहीं थे, बल्कि एक विचारधारा थे। उन्होंने समाज के कमजोर वर्गों के लिए जो आंदोलन चलाया, वह आज भी प्रासंगिक है।
उनकी शहादत ने बिहार और पूरे देश में एक नई राजनीतिक चेतना को जन्म दिया।
आज उनकी जन्मतिथि और शहादत दिवस पर हर साल श्रद्धांजलि दी जाती है और उनके विचारों को आगे बढ़ाने के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि समाज में बदलाव लाने के लिए संघर्ष और बलिदान की आवश्यकता होती है। अगर हमें एक समानता पर आधारित समाज बनाना है, तो हमें उनके विचारों को आत्मसात करना होगा।
“जगदेव बाबू का जीवन एक प्रेरणा है, जो हमें सिखाता है कि अधिकारों के लिए लड़ना ज़रूरी है।”